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नहीं रहा है,नहीं रहेगा

*गीत*(16/12)
नहीं रहा है,नहीं रहेगा,
इस जग में अभिमानी।
होता है अभिमान विनाशक,
अमर रहे बस दानी।।

प्रेम-भाव जब हिय में पलता,
मानव रहता मानव।
जब भी पले भाव हिंसा का,
वह बन जाता दानव।
विनयशीलता अद्भुत जग में,
गढ़ती सदा कहानी।।
     होता है अभिमान विनाशक,
      अमर रहे बस दानी।

मेल-जोल जीवन-परिभाषा,
इसे बनाए रखना।
मानवता का यह आभूषण,
गले सजाए चलना।
जिसने इस गहने को पहना,
वह कहलाता ज्ञानी।।
       होता है अभिमान विनाशक,
        अमर रहे बस दानी।।

करुणा-ममता-त्याग-गुणों से,
बने मनुज जग पूरा।
नहीं सरलता यदि स्वभाव में,
रहता सदा अधूरा।
हृद जो रहे परम सहिष्णु वह,
करे नहीं मनमानी।।
     होता है अभिमान विनाशक,
     अमर रहे बस दानी।।

रखें सदा अभिमान नियंत्रित,
तजकर भौतिक सुख को।
सेवा-भाव जताकर मन से,
करें ग्रहण इस रुख को।
व्यक्ति नम्र जो है स्वभाव का,
रहता नहीं गुमानी।।
       होता है अभिमान विनाशक,
        अमर रहे बस दानी।।
                 ©डॉ0हरि नाथ मिश्र
                     9919446372

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3 Comments

Varsha_Upadhyay

03-Jan-2023 08:15 PM

शानदार

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Haaya meer

01-Jan-2023 09:31 PM

👌👌

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